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TRILOKPUR IS CONSIDERED TO BE CHILDHOOD PLACE OF

#MAAVAISHNO DEVI

STORY behind Mata Bala Sundari Temple Trilokpur: Local shopkeeper Lala Ram Dass in 1573 approached the then ruler of Sirmour state #RajaDipParkash about the 

dream that he saw last night. Goddess appeared in his dream and narrated the incident of her disappearance from Devban(UP) and directed to construct a Temple to establish her PINDI swaroop. Devi’s “#pindi” was found by lala ram dass in the bag of salt brought from Devban ( UP). The said shopkeeper kept on selling salt from the bag throughout the day but the commodity did not exhaust and the bag remained filled as if nothing had been taken out there from.

Raja Dip Prakash inhesitanly agreed and got constructed a temple for the installation of the Divine PINDI of #MataBalasundari jee at Trilokpur.

The king invited some artisans from Jaipur [Rajasthan] in 1570AD and a beautiful marble temple dedicated to Goddess Tripur Bala Sundri came by 1573 AD.

  • The worship of Goddess Bala Sundri became the tradition in the Royal family.
  • The temple was renovated in an amalgam of Indo-Persian styles of architecture later on.
  • Every year over 32 lacs of devotees visit shrine of Bhagwati Bala Sundri.
  • Right since temple’s inception, the descendants of Lala Ram Das have been performing the main Pooja there.
TEMPLE MYTHOLOGY

ORIGIN & HISTORY OF TRILOKPUR TEMPLE

As per legend Maa Balasundari Jee had appeared in the year 1573 at Trilokpur in a bag of salt brought from Devban (UP) by a local shopkeeper Sh Ram Dass. The said shopkeeper kept on selling salt from the bag through out the day but the commodity did not exhaust and the bag remained filled as if nothing had been taken out there from . He was taken aback from the miracle and while in asleep in the night Goddess appeared in his dream narrated the incidence of her disappearance from Devban(UP) and directed to construct a Temple to establish her PINDI swaroop ,which was already existing inside the bag of salt and also directed to worship in the name of “MAHAMAYA BALASUNDARI” – an infant state of Goddess Veshno Devi.

माँ बाला सुंदरी का बहुत ही प्यारा भजन – “माँ बालासुन्दरी नमोः नमोः

OTHER ATTRACTION

Dhyanu Bhagat Temple

The visit to Shrine Trilokpur is not believed to be completed if you do not visit the temple of Dhyanu Bhagat.

Museum

The gate to Lalita Mata temple's way is situated on the road to main temple.

Shiva Mandir

The very next temple to Dhyanu bhagt's Temple is of lord Shiva. It is a beautiful temple, which is situated in the mid of a big pond.

Gau Shala

The gate to Lalita Mata temple's way is situated on the road to main temple.

Galley

TEMPLE GALLERY

Bank Details

BANK NAME

STATE BANK OF INDIA

ACCOUNT HOLDER NAME

SHRI MAHAMAYA BALASUNDRI JI TRILOKPUR TEMPLE TRUST

ACCOUNT NUMBER

11128708610

IFSC CODE

SBIN0000686

FAQ'S

FREQUENTLY ASKED QUSTIONS

माता बाला सुन्दरी जी के “पिंडी” के दर्शन क्यो नही होते

उत्तर भारत में करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था की प्रतीक मां बालासुंदरी माता के प्राचीन मंदिर में माता की “पिंडी” के दर्शन नहीं होते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि पिंडी को वस्त्र नहीं पहनाए जा सकते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि मां के वस्त्र फूल होते हैं। इस पिंडी को फूलों का ही श्रृंगार किया जाता है। सुबह-शाम इस पवित्र पिंडी का श्रृंगार भगत परिवार ही करता है।
मां बालासुंदरी को माता वैष्णो देवी का बाल स्वरूप माना जाता है। नवजात शिशु जिस तरह से वस्त्रहीन होता है, संभवतः मां बाला सुंदरी को भी बालस्वरूप में वस्त्रहीन माना जाता है। धार्मिक आस्था के मुताबिक जहां-जहां माता पार्वती के अंग पृथ्वी पर गिरे, उन 54 स्थानों पर शक्तिपीठ मौजूद हैं। इसमें से 7 शक्तिपीठ हिमाचल में मौजूद हैं। माता बालासुंदरी के स्थान त्रिलोकपुर को सिद्धपीठ माना जाता है।

कैसे होती है ध्यानु भगत की पूजा?

माता बाला सुंदरी का बाल स्वरूप होने के कारण आज भी लाखों श्रद्धालु त्रिलोकपुर ध्यानु भगत की पूजा-अर्चना पहले करते हैं। प्राचीन मंदिर में भी मां वैष्णो देवी के बाल स्वरूप की अर्चना के साथ-साथ ही ध्यानु भगत की भी अर्चना होती है।

कहां है माता का एक ओर प्राचीन मंदिर?

शायद इस बात को भी बेहद कम लोग जानते हैं कि मां बालासुंदरी माता का एक हू-ब-हू मंदिर नाहन के शाही महल में भी है। ठीक उसी तरीके की शैली पर मंदिर का निर्माण किया गया है, जैसा कि त्रिलोकपुर में है। त्रिलोकपुर में प्राचीन मंदिर की दिवारों पर चांदी की परतें चढ़ चुकी हैं, लेकिन शाही महल के मंदिर को अपनी जीर्णोद्धार की आवश्यकता है। गौरतलब है कि शाही महल में ही नगर खेड़ा महाराज जी का भी प्राचीन मंदिर स्थित है।
शाही महल में स्थित मां बालासुंदरी का प्राचीन मंदिर
यह मान्यता है कि 1573 में त्रिलोकपुर के एक व्यापारी रामदास की नमक की बोरी में माता पिंडी के रूप में यूपी के देवबन से यहां पहुंची थी। व्यापारी रामदास के परिवार के पास ही मंदिर की मुख्य पूजा की जिम्मेदारी आज भी है। इस परिवार को रियासत के समय से चली आ रही रिवायत के मुताबिक 31 रुपए सालाना मिलते हैं। जबकि राज परिवार द्वारा भेंट की गई सामग्री भी परिवार को जाती है। इसके अलावा माता की शैय्या पर भी परिवार का ही हक होता है।

क्या कहना है रामदास के वंशंज का?

प्राचीन मंदिर के समीप ही दुकान चला रहे रामदास के वंशंज का कहना है कि पुरानी रिवायतों के तहत ही पूजा-अर्चना होती है। उन्होंने कहा कि पिंडी का श्रृंगार फूलों से किया जाता है। मां के भगत का यह भी कहना है कि वैष्णो देवी माता के बाल स्वरूप में मां बालासुंदरी प्रकट हुई थी।

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11128708610

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SHRI MAHAMAYA BALASUNDRI JI TRILOKPUR TEMPLE TRUST

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