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माता बाला सुन्दरी जी के “पिंडी” के दर्शन क्यो नही होते

उत्तर भारत में करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था की प्रतीक मां बालासुंदरी माता के प्राचीन मंदिर में माता की “पिंडी” के दर्शन नहीं होते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि पिंडी को वस्त्र नहीं पहनाए जा सकते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि मां के वस्त्र फूल होते हैं। इस पिंडी को फूलों का ही श्रृंगार किया जाता है। सुबह-शाम इस पवित्र पिंडी का श्रृंगार भगत परिवार ही करता है।
मां बालासुंदरी को माता वैष्णो देवी का बाल स्वरूप माना जाता है। नवजात शिशु जिस तरह से वस्त्रहीन होता है, संभवतः मां बाला सुंदरी को भी बालस्वरूप में वस्त्रहीन माना जाता है। धार्मिक आस्था के मुताबिक जहां-जहां माता पार्वती के अंग पृथ्वी पर गिरे, उन 54 स्थानों पर शक्तिपीठ मौजूद हैं। इसमें से 7 शक्तिपीठ हिमाचल में मौजूद हैं। माता बालासुंदरी के स्थान त्रिलोकपुर को सिद्धपीठ माना जाता है।

कैसे होती है ध्यानु भगत की पूजा?

माता बाला सुंदरी का बाल स्वरूप होने के कारण आज भी लाखों श्रद्धालु त्रिलोकपुर ध्यानु भगत की पूजा-अर्चना पहले करते हैं। प्राचीन मंदिर में भी मां वैष्णो देवी के बाल स्वरूप की अर्चना के साथ-साथ ही ध्यानु भगत की भी अर्चना होती है।

कहां है माता का एक ओर प्राचीन मंदिर?

शायद इस बात को भी बेहद कम लोग जानते हैं कि मां बालासुंदरी माता का एक हू-ब-हू मंदिर नाहन के शाही महल में भी है। ठीक उसी तरीके की शैली पर मंदिर का निर्माण किया गया है, जैसा कि त्रिलोकपुर में है। त्रिलोकपुर में प्राचीन मंदिर की दिवारों पर चांदी की परतें चढ़ चुकी हैं, लेकिन शाही महल के मंदिर को अपनी जीर्णोद्धार की आवश्यकता है। गौरतलब है कि शाही महल में ही नगर खेड़ा महाराज जी का भी प्राचीन मंदिर स्थित है।
शाही महल में स्थित मां बालासुंदरी का प्राचीन मंदिर
यह मान्यता है कि 1573 में त्रिलोकपुर के एक व्यापारी रामदास की नमक की बोरी में माता पिंडी के रूप में यूपी के देवबन से यहां पहुंची थी। व्यापारी रामदास के परिवार के पास ही मंदिर की मुख्य पूजा की जिम्मेदारी आज भी है। इस परिवार को रियासत के समय से चली आ रही रिवायत के मुताबिक 31 रुपए सालाना मिलते हैं। जबकि राज परिवार द्वारा भेंट की गई सामग्री भी परिवार को जाती है। इसके अलावा माता की शैय्या पर भी परिवार का ही हक होता है।

क्या कहना है रामदास के वंशंज का?

प्राचीन मंदिर के समीप ही दुकान चला रहे रामदास के वंशंज का कहना है कि पुरानी रिवायतों के तहत ही पूजा-अर्चना होती है। उन्होंने कहा कि पिंडी का श्रृंगार फूलों से किया जाता है। मां के भगत का यह भी कहना है कि वैष्णो देवी माता के बाल स्वरूप में मां बालासुंदरी प्रकट हुई थी।